नई दिल्ली। झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद ईवीएम एक बार फिर चर्चा में हैं। कांग्रेस ने इनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हुए इनके खिलाफ बड़े आंदोलन की तैयारी की है। इस बहस के बीच, बांग्लादेश, जर्मनी, नीदरलैंड, जापान और आयरलैंड जैसे कई देशों ने ईवीएम का इस्तेमाल पूरी तरह बंद कर दिया है।बांग्लादेश ने 2018 के आम चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल किया था, लेकिन इसके बाद विपक्षी दलों के विरोध और दुरुपयोग के आरोपों के चलते 2023 में पारंपरिक मतपेटियों पर लौट आया। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने ईवीएम पर छेड़छाड़ के आरोप लगाए थे, जिसके दबाव में सरकार ने नई ईवीएम खरीदने का प्रस्ताव भी खारिज कर दिया था। इसके बजाय, बांग्लादेश ने पारंपरिक मतपत्रों की प्रक्रिया को अपनाकर चुनावी पारदर्शिता और सार्वजनिक विश्वास को बहाल करने का प्रयास किया। जापान ने भी सुरक्षा और विश्वसनीयता के सवालों के चलते 2018 में नगरपालिका चुनावों के बाद ईवीएम का उपयोग बंद कर दिया था। यहां ईवीएम को पारदर्शिता की कमी और छेड़छाड़ के जोखिम के चलते नकारा गया।
सुरक्षा और विश्वसनीयता के सवालों के चलते कई देशों ने लगा दी बैन
जर्मनी में, 2009 में एक अदालत ने ईवीएम को असंवैधानिक घोषित कर दिया, क्योंकि ये आम नागरिकों के लिए पारदर्शी नहीं थी। इसके बाद जर्मनी ने कागजी मतपत्रों पर वापस लौटने का फैसला लिया। नीदरलैंड में 2006 में एक स्वतंत्र समूह ने ईवीएम की सुरक्षा खामियों को उजागर करते हुए बताया कि इन मशीनों से छेड़छाड़ संभव है। इसके बाद सरकार ने सभी ईवीएम को अमान्य घोषित कर दिया। इसी तरह, आयरलैंड ने 2010 में सुरक्षा और पारदर्शिता की कमी के चलते ईवीएम का इस्तेमाल बंद कर दिया। दूसरी ओर पाकिस्तान जैसे देश ईवीएम के इस्तेमाल पर विचार कर रहे हैं। उन्होंने एक प्रोटोटाइप विकसित किया है, लेकिन इसके उपयोग पर अंतिम फैसला अभी नहीं लिया गया है। भारत में ईवीएम का इस्तेमाल 1990 के दशक से हो रहा है और चुनाव आयोग इसे सुरक्षित और पारदर्शी मानता है। हालांकि, विपक्षी दलों का आरोप है कि इनका दुरुपयोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों ने इसके खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है।
ईवीएम को लेकर वैश्विक अनुभव यह बताता है कि चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता और सार्वजनिक विश्वास बेहद अहम है। भारत में इस तकनीक का इस्तेमाल जारी रखने या बंद करने का फैसला इस बहस पर आधारित होगा कि यह प्रक्रिया को कितना विश्वसनीय और निष्पक्ष बनाता है। ईवीएम पर विवाद केवल तकनीकी नहीं, बल्कि लोकतंत्र की बुनियादी संरचना और जनता के विश्वास से जुड़ा मुद्दा है।