भोपाल। आयुष्मान कार्ड धारकों को निजी अस्पतालों में 196 बीमारियों का इलाज नहीं मिल रहा। इसमें सीजर डिलीवरी, मोतियाबिंद, मलेरिया, नवजात शिशु देखभाल जैसी सामान्य बीमारियां शामिल हैं। कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों के लिए भी 5 लाख रुपये की सीमा पर्याप्त नहीं है।सवाल यह उठता है कि आखिर आयुष्मान कार्ड धारकों को निजी अस्पतालों में इलाज मिलना क्यों कठिन हो गया है? दरसअल मध्य प्रदेश में पिछले सालों में आयुष्मान योजना में फर्जीवाड़ा और उज्जैन में लेप्रोस्कोपिक सर्जरी में फर्जीवाड़ा उजागर होने के बाद, सरकार ने कई बीमारियों को निजी अस्पतालों के पैकेज से बाहर कर दिया है। इससे मरीजों को सरकारी अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों पर निर्भर रहना पड़ रहा है।
निजी अस्पतालों के पैकेज से 196 बीमारियों हुईं बाहर
जहां तक अन्य राज्यों की योजनाओं की बात है तो यहां बताते चलें कि राजस्थान में चिरंजीवी योजना है, जिसकी सीमा 10 लाख तक की है। इस योजना में सरकारी और निजी दोनों ही अस्पताल शामिल किए गए हैं। वहीं आंध्र प्रदेश की आरोग्यश्री योजना है, जिसकी सीमा 5 लाख तक की है। गुजरात में मुख्यमंत्री अमृतम योजना चल रही है जो कि गंभीर बीमारियों पर फोकस करती है। इस संबंध में जब हम मध्य प्रदेश की स्थिति को देखते हैं तो पाते हैं कि आयुष्मान योजना के तहत निजी अस्पतालों में सामान्य बीमारियों का इलाज बंद होने से मरीजों को राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों का रुख करना पड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों में वेटिंग लिस्ट लंबी हो रही है। इससे गरीबों को उचित इलाज मिलना भी मुश्किल हो गया है। इस पूरे मामले में स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ला का कहना है कि अन्य राज्यों के मॉडल का अध्ययन कर योजना में सुधार की कोशिश की जाएगी। इससे उम्मीद की जा रही है कि जल्द ही योजना का लाभ दोबारा गरीबों को समय पर मिल सकेगा। बहरहाल आयुष्मान योजना को गरीबों के लिए प्रभावी बनाने के लिए सरकारी और निजी अस्पतालों में संतुलन की आवश्यकता है। साथ ही, इलाज का अधिकार सुनिश्चित करने के लिए बेहतर योजनाएं और संसाधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।